सिंहल जनपद

Author : Acharya Pranesh   Updated: June 13, 2022   2 Minutes Read   6,270

रामायण काल में रावण की राजधानी, जिसकी स्थिति वर्तमान 'सिंहल' (सीलोन) या लंका द्वीप में मानी जाती है।

भारत और लंका के बीच के समुद्र पर पुल बनाकर श्रीरामचंद्र अपनी सेना को लंका ले गए थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भारत के दक्षिणतम भाग में स्थित महेन्द्र नामक पर्वत से कूदकर श्रीराम के परम भक्त हनुमान समुद्र पार लंका पहुंचे थे। रामचंद्रजी की सेना ने लंका में पहुंचकर समुद्र तट के निकट सुवेल पर्वत पर पहला शिविर बनाया था। लंका और भारत के बीच के उथले समुद्र में जो जलमग्न पर्वत श्रेणी है, उसके एक भाग को वाल्मीकि रामायण में मैनाक कहा गया है।

लंका 'त्रिकूट' नामक पर्वत पर स्थित थी। यह नगरी अपने ऐश्वर्य और वैभव की पराकाष्ठा के कारण स्वर्ण-मयी कही जाती थी। वाल्मीकि ने अरण्यकाण्ड 55,7-9 और सुन्दरकाण्ड 2,48-50 में लंका का सुदर वर्णन किया है- 'प्रदोष्काले हनुमानंस्तूर्णमुत्पत्य वीर्यवान्, प्रविवेश पुरीं रम्यां प्रविभक्तां महापथाम्, प्रासादमालां वितता स्तभैः काचनसनिभैः, शातकुभनिभैर्जालैर्गधर्वनगरोपमाम्, सप्तभौमाष्टभौमैश्च स ददर्श महापुरीम्; स्थलैः स्फटिकसंकीर्णः कार्तस्वरांविभूषितैः, तैस्ते शुशभिरेतानि भवान्यत्र रक्षसाम्।'

वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड 3 में भी इस रम्यनगरी का मनोहर वर्णन है, जिसका मुख्य भाग इस प्रकार है- 'शारदाम्बुधरप्रख्यैभंवनैरुपशोभिताम्,  

सागरोपम निर्घोषां सागरानिलसेविताम्।

सुपुष्टबलसंपुष्टां यथैव विटपावतीम्  

चारुतोरणनिर्यूहां पांडूरद्वारतोणाम्।  

भुजगाचरितां गुप्तां शुभां भोगवतीमिव,

तां सविद्यद्घनाकीर्णा ज्योतिर्गणनिषेदिताम्।  

चंडमारुतनिर्हृआदां यथा चाप्यमरावतीम्  

शातकुंभेन महता प्राकारेणभिसंवृताम्  

किंकणीजालघोषाभि: पताकाभिरंलंकृताम्,  

आसाद्य सहसा हृष्ट: प्राकारमभिपेदिवान्।  

वैदूर्यकृतसोपानै:, स्फटिक मुक्ताभिर्मणिकुट्टिमभूषितै:

तप्तहाटक निर्यूहै: राजतामलपांडूरै:,

वैदूर्यकृतसोपानै: स्फटिकान्तरपांसुभि:,

चारुसंजवनोपेतै: खमिवोत्पतितै: शुभै:,

क्रौंचबर्हिणसंघुष्टैरजिहंसनिषेवितै:,  

तूर्याभरणनिर्घोर्वै: सर्वत: परिनादिताम्।  

वस्वोकसारप्रतिमां समीक्ष्य नगरी तत:,

खमिवोत्पतितां लंकां जहर्ष हनुमान् कपि:।

'सुन्दरकाण्ड 3,2-3-4-5-6-7-8-9-10-11-12;

हनुमान ने सीता से अशोक वाटिका में भेट करने के उपरान्त लंका का एक भाग जलाकर भस्म कर दिया था। सुन्दरकाण्ड 54,8-9 और सुन्दरकाण्ड 14 में लंका के अनेक कृत्रिम वनों एवं तड़ागों का वर्णन है। राम ने रावण के वधोपरान्त लंका का राज्य विभीषण को दे दिया था।

बौद्धकालीन लंका का इतिहास 'महावंश' तथा 'दीपवंश' नामक पाली ग्रंथो में प्राप्त होता है। अशोक के पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा ने सर्वप्रथम लंका में बौद्ध मत का प्रचार किया था।  

 

आधुनिक श्रीलंका का ही प्राचीन बौद्धकालीन नाम. सिंहल के पाली में लिखे प्राचीन बौद्ध ग्रंथ महावंश में उल्लिखित जनश्रुतियों के अनुसार लंका के प्रथम भारतीय नरेश की उत्पत्ति सिंह से होने के कारण इस देश को सिंहल कहा जाता था। सिंहल के बौद्धकालीन इतिहास का विस्तार से वर्णन महवंश में है. इस ग्रंथ में वर्णित है कि मौर्य सम्राट् अशोक के पुत्र महेंद्र और संघमित्रा ने सिंहद्वीप पहुँचकर वहाँ प्रथम बार बौद्ध मत का प्रचार किया था.

गुप्तकाल में समुद्रगुप्त के साम्राज्य की सीमा सिंहल द्वीप तक मानी जाती थी. हरिषेण  रचित समुद्रगुप्त की प्रयागप्रशस्ति में सैंहलकों का गुप्त सम्राट् के लिए भेंट उपहार आदि लेकर उपस्थित होने का वर्णन आया है--

'देवपुत्रषाहीषाहनुषाहि-शकमुरुंडै:सैंहलकादिभिश्च'.  

बौद्धगया से प्राप्त एक अभिलेख से यह भी सूचित होता है कि समुद्रगुप्त के शासनकाल में सिंहल नरेश मेघवर्णन द्वारा इस पुण्यस्थान पर एक विहार बनवाया था.

मध्यकाल की अनेक लोक कथाओं में सिंहल का उल्लेख है. जायसी रचित पद्मावत में सिंहल की राजकुमारी पद्मावती की प्रसिद्ध कहानी वर्णित है. लोककथाओं में सिंहल देश को धनधान्यपूर्ण रत्नप्रसविनी भूमि माना गया है जहां की सुंदरी राजकुमारी से विवाह करने के लिए भारत के अनेक नरेश इच्छुक रहते थे. सिलोन सिंहल का ही अंग्रेजी रूपांतर है. लंका के अतिरिक्त सिंहल के पारसमुद्र, ताम्रद्वीप, ताम्रपर्णी तथा धर्मद्वीप आदि नाम भी बौद्ध साहित्य में प्राप्त होते हैं.

लंका का प्राचीन नाम है. कौटिल्य-अर्थशास्त्र (अध्याय-11) में पारसमुद्र को लंका का नाम कहा गया है. वाल्मीकि रामायण 6,3,21 में 'पारेसमुद्रस्य' कहकर लंका की स्थिति का जो वर्णन है वह भी इस नाम से संबंधित हो सकता है. पेरिप्लस में इससे पालीसिमंदु (Palaesimundu) कहा गया है.

महाभारत (II.31.12)[12], (II.48.30)[13], (III.48.19)[14] सिंहली जनजाति को संदर्भित करता है।

 

सिंहली साम्राज्य या सिंहली साम्राज्य एक या सभी क्रमिक सिंहली साम्राज्यों को संदर्भित करता है जो आज श्रीलंका में मौजूद हैं।

द्रविडाः सिंहलाश चैव राजा काश्मीरकस तदा, 
कुन्तिभॊजॊ महातेजाः सुह्मश च सुमहाबलः (II.31.12)

समुद्रसारं वैडूर्यं मुक्ताः शङ्खांस तदैव च, 
शतशश च कुदांस तत्र सिन्हलाः समुपाहरन (II.48.30)

सागरानूपगांश चैव ये च पत्तनवासिनः,
 सिंहलान बर्बरान मलेच्छान ये च जाङ्गलवासिनः (III.48.19)

 


Disclaimer! Views expressed here are of the Author's own view. Gayajidham doesn't take responsibility of the views expressed.

We continue to improve, Share your views what you think and what you like to read. Let us know which will help us to improve. Send us an email at support@gayajidham.com


Get the best of Gayajidham Newsletter delivered to your inbox

Send me the Gayajidham newsletter. I agree to receive the newsletter from Gayajidham, and understand that I can easily unsubscribe at any time.

x
We use cookies to enhance your experience. By continuing to visit you agree to use of cookies. I agree with Cookies